इसमें मथुरा के केशवदेव मंदिर की मूर्तियों को आगरा की शाही जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी हुई बताकर हटाने की मांग की गई है। पिछले हफ्ते याचिका पर सुनवाई के दौरान दूसरा पक्ष कोर्ट में पेश नहीं हुआ. इस पर कोर्ट ने मामले में सुनवाई के लिए 18 जुलाई की तारीख तय की. वादी की ओर से नोटिस तामील कराने के लिए विशेष दूत भेजने का प्रार्थना पत्र दिया गया।
कथावाचक देवकीनंदन महाराज की याचिका पर कोर्ट ने इस्लामिया लोकल एजेंसी, यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, लखनऊ समेत सभी पक्षों को नोटिस देकर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है.
देवकीनंदन महाराज ने बताया कि उन्होंने ट्रस्ट की ओर से न्यायालय सिविल जज (प्रवर खंड) आगरा के समक्ष मुकदमा संख्या 518/23 दायर किया है। इसमें अदालत से आगरा स्थित मस्जिद (जहांआरा बेगम मस्जिद) की सीढ़ियों में दबी भगवान केशवदेव की मूर्तियों को वापस दिलाने का अनुरोध किया गया है.
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कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए सचिव इंतजामिया कमेटी शाही मस्जिद आगरा किला, छोटी मस्जिद, दीवान-ए-खास जहांआरा बेगम मस्जिद आगरा किला, अध्यक्ष यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ और सचिव श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को नोटिस भेजा है। सभी ने अपना पक्ष रखा है. इसे रखने के लिए कहा गया है. इसे लेकर कोर्ट ने 31 मई की तारीख दी थी. लेकिन, उस तिथि पर कोई नहीं आया. इसके बाद दोबारा नोटिस भेजकर 11 जुलाई की तारीख तय की गई। इसके बाद फिर 18 जुलाई की तारीख तय की गई.
कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर का दावा है कि आगरा की जामा मस्जिद में बनी सीढ़ियों के नीचे भगवान केशवदेव मंदिर की मूर्तियां हैं. उन्होंने इतिहास की पुस्तकों का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 1670 में मुगल शासक औरंगजेब ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर स्थित ठाकुर केशव देव मंदिर को ध्वस्त कर उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कराया था.
उनका दावा है कि मूर्तियां आगरा की जहांआरा बेगम मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी हुई थीं। मुस्लिम लोग इन्हीं सीढ़ियों पर चढ़कर मस्जिद में जाते हैं। पवित्र मूर्तियों को आज भी पैरों तले रौंदा जा रहा है।
ट्रस्ट के अधिवक्ता विनोद कुमार शुक्ला ने बताया कि पिछली तारीख पर कोर्ट की ओर से जामा मस्जिद समेत अन्य पक्षकारों को नोटिस भेजा गया था। लेकिन, इसके बाद भी किसी भी पक्ष ने नोटिस नहीं दिया. उनका मानना है कि जानबूझकर नोटिस तामील नहीं कराकर वह कोर्ट में उपस्थित नहीं हो रहे हैं.
इसी वजह से कोई ठोस निर्णय लेने में देरी हो रही है. उनकी ओर से नोटिस तामील कराने के लिए कोर्ट में विशेष दूत भेजने का आवेदन दिया गया है. इस पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. 18 जुलाई को सुनवाई होने वाली है.
आगरा में बिजली घर के पास शाही जामा मस्जिद है। इतिहासकारों के अनुसार इस मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ की सबसे प्रिय बेटी जहाँआरा ने करवाया था। जब मुमताज की मृत्यु हुई तब जहाँआरा केवल 17 वर्ष की थी। मुमताज की मृत्यु के बाद शाहजहाँ ने अपनी आधी संपत्ति जहाँआरा को दे दी और बाकी संपत्ति अन्य बच्चों में बाँट दी। जहाँआरा उस समय की सबसे अमीर राजकुमारी थी। तब उन्हें करीब दो करोड़ रुपये सालाना खर्च मिलता था।
जहाँआरा ने इस पैसे से 1643 से 1648 के बीच जामा मस्जिद का निर्माण कराया था। जामा मस्जिद 271 फीट लंबी और 270 फीट चौड़ी है। जिसमें करीब पांच लाख रुपये खर्च हुए। जामा मस्जिद लाल बलुआ पत्थर से बनी है। इसकी दीवार में लगे टाइल्स का आकार ज्यामितीय है। जामा मस्जिद में एक साथ 10,000 लोग नमाज अदा कर सकते हैं. जामा मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षित स्मारक में शामिल है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 16वीं शताब्दी के सातवें दशक में मुगल बादशाह औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर को नष्ट कर दिया था। केशवदेव मंदिर की मूर्तियाँ जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी हुई थीं। कई इतिहासकारों ने अपनी किताबों में इसका जिक्र किया है. साल 1940 में एसआर शर्मा ने ‘भारत में मुगल साम्राज्य’ नाम से एक किताब लिखी, जिसमें जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर दबी हुई मूर्तियों के बारे में विस्तार से बताया गया है.
इसके अलावा औरंगजेब के सहायक मुहम्मद साकी मुस्तैदखान ने फारसी भाषा में अपनी पुस्तक ‘मासीर-ए-आलमगिरी’ में इस घटना का उल्लेख किया है। इस घटना का जिक्र भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार की किताब ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब में भी मिलता है। इसके अलावा इस घटना का जिक्र विदेशी लेखक फ्रेंकोइस गौटियर की किताब औरंगजेब आइकॉनोलिज्म में भी किया गया है।
(यूट्यूब https://www.youtube.com/watch?v=UtpxpsZ2XOQ)
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