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हस्तिनापुर के पांडवेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी

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मेरठ, 10 जुलाई (हि.स.)। कौरवों और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर की भूमि अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को यहां प्राचीन पांडव टीले से खुदाई में महाभारत काल के अवशेष मिले हैं। इस टीले पर पांडवों द्वारा स्थापित पांडेश्वर महादेव मंदिर है। श्रावण माह में इस मंदिर में जलाभिषेक करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। कुरु की राजधानी हस्तिनापुर की मान्यता पूरे विश्व में है। हस्तिनापुर में आज भी महाभारत काल के अवशेष मौजूद हैं। हस्तिनापुर के प्राचीन पांडव टीले में कई सभ्यताओं के अवशेष मौजूद हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पुरातत्वविद् प्रो. बीबी लाल द्वारा 1952-52 में की गई खुदाई में पहली बार पांडव टीले से चित्रित धूसर मृदभांड मिले थे। समर्थक। बीबी लाल ने इन पुरावशेषों को महाभारत काल का बताया था। इसके बाद 2022 में हुई खुदाई में एएसआई को फिर से महाभारत काल के अवशेष मिले। इनमें कांच के बर्तन, लंबी दीवार, प्राचीन दीवारों के अवशेष, चित्रित मिट्टी के बर्तन, प्राचीन मिट्टी के बर्तनों के अवशेष, मिट्टी के बर्तन, चूड़ियाँ, जली हुई हड्डियाँ और जानवरों की हड्डियों के अवशेष शामिल हैं। इन अवशेषों को दिल्ली स्थित संग्रहालय में रखा गया है और शोध किया जा रहा है। हस्तिनापुर में एक बड़ा संग्रहालय बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है.

मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी

पांडव टीले पर स्थित प्राचीन पांडवेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई थी। राजकीय संग्रहालय झाँसी के उपनिदेशक डॉ. मनोज गौतम का कहना है कि पांडवों द्वारा स्थापित इस मंदिर की बहुत मान्यता है। इस मंदिर में पांचों पांडवों और द्रौपदी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में पांडव आकर पूजा करते थे। इस मंदिर को देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। श्रावण मास में जलाभिषेक करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है।

मंदिर का जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा है।

पांडवेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा है। वर्तमान में मराठा शैली में बने इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1798 में राजा नैन सिंह ने कराया था। इस मंदिर के परिसर में विशाल बरगद का पेड़ आज भी मौजूद है। जो बहुत प्राचीन बताया जाता है। भक्त इस वट वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर में स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है, जो लगातार जलाभिषेक के कारण आधा रह गया है।

जयंती माता पांडव टीले पर विद्यमान हैं

पांडव टीले पर जयंती माता का प्राचीन मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि पांडेश्वर महादेव के दर्शन के बाद जयंती माता के दर्शन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। जयंती माता को पांडवों की कुलदेवी भी माना जाता है। मंदिर के संस्थापक सुदेश कुमार बताते हैं कि पांडवों को कई दिव्यास्त्र जयंती माता से ही प्राप्त हुए थे। इस मंदिर के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त हस्तिनापुर आते हैं।

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